मोदी सरकार की दूसरी पारी के एक साल पूरे होने पर मेरी एक अपील!
आप भूले नहीं होंगे कि लोकसभा चुनाव- 2019 में मोदी विपक्ष, विशेषकर बहुजनवादी दलों की निष्क्रियता और अदूरदर्शिता के चलते प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा देश की बागडोर अपने हाथों में लिए। उनकी सत्ता की दूसरी पारी के कल 29 मई, 2020 को एक साल पूरे हो गए । गत एक एक साल में उन्होंने अपने अपने लक्ष्य – ‘हिन्दू उर्फ उर्फ सवर्ण- राष्ट्र निर्माण- को साधने में असाधारण काम किया है। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु उन्होंने पिछले एक साल में अनुच्छेद -370, तीन तलाक, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, नागरिकता संशोधन कानून, श्रम-क़ानूनों में भारी बदलाव के साथ लॉकडाउन के जरिये विश्व के सबसे बड़े जन्मजात श्रमिक वर्ग (बहुजनों ) की दशा अत्यंत कारुणिक बनाया है, उससे मुमकिन है हिन्दू उर्फ सवर्ण कल उन्हें भगवान का दर्जा दे दें! मोदी द्वारा हिन्दू राष्ट्र निर्माण की दिशा में बेहद प्रभावी काम अंजाम दिये जाने के बाद आज की तारीख में भाजपा पहले से भी ज्यादा अप्रतिरोध्य अप्रतिरोध्य बन गयी है : सत्ता से उसके आउट होने की कल्पना करना दुःसाहसपूर्ण सपना लगता है। किन्तु इस खास अवसर पर मैं आपको अपनी किताबों के जरिये मोदी-राज के अंत का दु:साहसपूर्ण दिखाना चाहता हूँ। मेरी किताबें पढ़कर आप में यकीन पैदा होगा कि भाजपा जितनी अप्रतिरोध्य दिख रही है, उतनी है नहीं। यदि बहुजन नेतृत्व सही मुद्दे और रणनीति के साथ मैदान में उतरे तो दुसाध के शब्दों मे,’भाजपा को शिकस्त देने जैसा आसान पॉलिटिकल टास्क कुछ हो ही नहीं सकता।‘ इस अवसर पर मैं विनम्रता के साथ कहना चाहता हूँ कि यदि आप भाजपा से त्रस्त हैं तो पढ़ें दुसाध की भाजपा – विरोधी किताबें ! इस विषय में मेरी निम्न अपील पर गौर फरमायेँ .
डियर मैडम/ सर, यदि आप सचमुच हिन्दुत्ववादी भाजपा की राष्ट्र व बहुजन-विरोधी नीतियों से त्रस्त हैं तो आपको हिन्दुत्व की राजनीति पर भारत में सर्वाधिक लेखन करने वाले दुसाध की 9 किताबों का सेट अवश्य ही पढ़ना चाहिए। आप जानते हैं कि मैंने विगत दो दशकों में कुल 80 किताबें तैयार की हैं, जिनके सम्पूर्ण सेट का मूल्य 40,000 से कुछ अधिक रुपए का है। इन सभी किताबों में समतामूलक भारत निर्माण के लिए जहां एक ओर शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक) में सामाजिक और लैंगिक विविधता के प्रतिबिम्बन के सूत्र को बलिष्ठतापूर्वक स्थापित करने का प्रयास हुआ है, वहीं दूसरी ओर बहुजन राजनीति को प्रतिष्ठित करने का । चूंकि 21वीं सदी में समतामूलक भारत निर्माण में हिन्दुत्ववादी राजनीति एवरेस्ट बनकर खड़ी रही है, इसलिए मैंने डाइवर्सिटी और बहुजनवादी राजनीति के साथ हिन्दुत्व की राजनीति पर भी भूरि-भूरि लेखन किया । इस क्रम में 1000 पृष्ठीय ‘सामाजिक परिवर्तन मे बाधक : हिन्दुत्व’ जैसी किताब आपको उपहार दे सका, जो हिन्दुत्व की राजनीति पर किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गयी सबसे बड़ी किताब है। हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव, 2010 के बिहार विधानसभा और 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जिस तरह भाजपा के घोषणापत्रों में ‘डाइवर्सिटी’ के एजेंडे को जगह मिली, उससे उसके प्रति मैं भी कुछ-कुछ दुर्बलता पोषण करने लगा था। किन्तु 2014 में सत्ता में आने के बाद जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रधान लक्ष्य- हिन्दू उर्फ सवर्ण राष्ट्र निर्माण- साधने के लिए हिन्दुत्ववादी अर्थात सवर्णवादी राजनीति को तुंग पर पहुँचाते हुये आरक्षित वर्गों के सफाये के जुनून में 24 जुलाई,1991 को लागू नवउदारवादी अर्थनीति को हथियार के रूप मे इस्तेमाल करने लगे, उससे 2019 में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए तमाम बहुजन नेता, बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट और संगठन अपने-अपने स्तर पर मुस्तैद हुये, जिसका अपवाद मैं भी नहीं रहा। इस दिशा में अपना कर्तव्य निर्वहन के लिए ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ की ओर से मैंने दिसंबर 2017 से अप्रैल, 2019 के मध्य 8 किताबें तैयार की। इनमें सबसे चुनौतीपूर्ण किताब रही ‘सवर्ण और विभागवार आरक्षण..’, जिसे तैयार करने का संकल्प सवर्ण आरक्षण लागू होने बाद 12 जनवरी,2019 को लिया और 17 मार्च को बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के स्थापना दिवस के अवसर पर 250 पृष्ठों की एक असाधारण पुस्तक बनाकर राष्ट्र को भेंट कर दिया।चूंकि मैं 1-9 तक मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी, जिसकी भीषणतम व्याप्ति भारत में है, को मानता हूँ, इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते सवा साल में मैंने भाजपा-विरोधी जो 8 किताबें तैयार किया, उन सभी में ही मैंने यह बताने का प्रयास किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किस तरह आर्थिक सामाजिक गैर-बराबरी को शिखर पर पहुंचाया:किस तरह उन्होने सवर्णों के हित में अपने वर्ग-शत्रुओ (आरक्षित वर्गों) के सफाये लिए श्रम कानूनों को शिथिल करने, हास्पिटलों, रेलवे, हवाई अड्डों के साथ ढेरों लाभजनक सरकारी उपकर्मो को निजी हाथों मे देने तथा बहुजनों को उच्च शिक्षा से दूर धकेलने में अपनी तानाशाही सत्ता का इस्तेमाल किया एवं किस तरह उनकी सवर्णपरस्त नीतियों से दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धमांतरित तबके उस स्टेज मे पहुँच गए जिसमें भारत, दक्षिण अफ्रीका इत्यादि की भांति पूरी दुनिया में ही शासकों के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम संगठित हुये।हाँ, इन सभी किताबों में एक और जो कॉमन बात लिखा, वह यह कि विश्व के सबसे बड़े संगठन संघ का राजनीतिक संगठन, भाजपा आज दुनिया की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी है, क्योंकि आज की तारीख में मतदाता के रूप मे किसी पार्टी के पास देश के शासक समुदाय का 80-90 प्रतिशत समर्थन नहीं है; दुनिया की किसी भी पार्टी के पास भाजपा की भांति लेखकों, मीडिया और पूँजीपतियों के साथ उन साधु-संतों का 90 प्रतिशत से अधिक समर्थन नहीं है, जिनके कदमों में राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति, सीएम से लेकर पीएम तक लोटकर खुद को धन्य महसूस करते हैं, बावजूद इसके भाजपा को हराने जैसा आसान पॉलिटिकल टास्क कुछ हो ही नहीं सकता।आप में से जो मेरे नियमित पाठक है,उन्हे पता हैं कि अपने अखबारी लेखों से लेकर टीवी डिबेटों में मैं बराबर ही दावा करते रहा हूँ कि भाजपा को हराने से आसान कोई पॉलिटिकल काम हो ही नहीं सकता । मेरे इस दावे के पीछे क्या युक्ति है, उसे जानने के लिए यदि आप इच्छुक हैं मेरी निम्न किताबों का सेट आपको अवश्य पढ़ना चाहिए। 1- सामाजिक परिवर्तन में बाधक : हिन्दुत्व, प्रकाशन वर्ष-2005 , मूल्य- पेपर बैक- 1000 रुपए, सजिल्द- 2500 रुपए2- राष्ट्र की जरूरत : राममंदिर या सामाजिक अन्यायमुक्त भारत निर्माण, प्रकाशन वर्ष- दिसंबर, 2017, मूल्य- पेपर बैक -150 रुपए, सजिल्द- 300 रुपए3- बहुजन राजनीति का पतन, प्रकाशन वर्ष- दिसंबर 2017 , मूल्य-पेपर बैक 170 रुपए, सजिल्द 350 रुपए 4- 2019: भारत के इतिहास में बहुजनों की सबसे बड़ी लड़ाई , प्रकाशन वर्ष- दिसंबर, 2017, मूल्य- 70 रुपए 5- भाजपा-मुक्त भारत का अचूक अजेंडा , प्रकाशन वर्ष- मार्च, 2018, मूल्य- 40 रुपए 6- धन-दौलत के न्यायपूर्ण बँटवारे के लिए : सर्वव्यापी आरक्षण की जरूरत (विशेष संदर्भ :अमेरिकी और दक्षिण अफ्रीकी आरक्षण ), प्रकाशन वर्ष- अक्तूबर, 2018, मूल्य- 60 रुपए 7- हकमार वर्ग(विशेष संदर्भ: आरक्षण का वर्गीकरण), प्रकाशन वर्ष, नवंबर, 2018, मूल्य- 60 रुपए 8- सवर्ण और विभागवार आरक्षण : वर्ग संघर्ष के इतिहास में बहुजनों पर सबसे बड़ा हमला , प्रकाशन वर्ष- मार्च, 2019 , मूल्य- पेपर बैक – 250 रुपए, सजिल्द- 600 रुपए 9- 2019 : भाजपा-मुक्त भारत Nb: उपरोक्त किताबों के पेपर बैक के सेट का मूल्य 1870 रुपए, जबकि सजिल्द के सेट का मूल्य 4000 से अधिक रुपए का है। ये सारी किताबें पेपर बैक में सिर्फ 1400 रुपए में आप तक पहुंच जाएंगी। किताबों के लिए मेरे मोबाइल 9654816191 पर सीधे मुझे आदेश करना पड़ेगा। हाँ, एक समस्या यह है कि मैं नेट1000 रुपए मूल्य के नीचे का आदेश स्वीकार नहीं करता। उपरोक्त किताबों में से आप 1, 2, 3 और 8 नंबर वाली किताबें amazon पर भी ऑर्डर कर सकते हैं।
निवेदक: एच एल दुसाध, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बहुजन डाइवर्सिटी मिशन, दिल्ली