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सोजे वतन: क्रांतिकारी नहीं, निहायत ही प्रगति व मानवता विरोधी रचना !
मित्रों, कल असाधारण बहुजन लेखिका shelly kiran के एक पोस्ट पर कमेन्ट करने के क्रम मे मैंने प्रेमचंद की मशहूर रचना ‘सोजे वतन’ के विषय में निम्न टिप्पणी किया। खुशी होगी कोई मुझे भ्रांत प्रमाणित कर दे ! ‘प्रेमचंद की सीमाबद्धता को उजागर करने के लिए अम्बेडकरवादियों को ‘सोजे वतन’ पर ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी चाहिए. निश्चय ही ‘सोजे वतन’ प्रेमचंद के शुरुआती दौर की रचना होने के कारण, लेखक को ग्रेस मार्क देने की मांग करती है. पर, चूंकि इसे प्रेम चंद के गुणानुरागि एक क्रांतिकारी रचना मानते हैं, इसलिए इसे तेज़ाबि परीक्षण की कसौटी पर कसना गलत नहीं होगा. प्रेमचंद के भक्तों को भ्रम है कि रचना सत्ता…
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मेरे बाबूजी बृजमोहन प्रसाद: जिनकी दुनिया मेरे और मेरे बच्चो तक सीमित रही!
मैं वर्षों से फेसबुक पर फादर’स डे के अवसर पर बाबूजी पर कोई पोस्ट डालने से बचता रहा। इसका खास कारण यह रहा कि पिता के रूप में बाबूजी की खूबियों के शब्दों में व्यक्त करना मेरे बूते के बाहर रहा. किन्तु बच्चों के अनुरोध पर पिछले साल से उन्हे एफबी पर याद करना शुरू किया हूँ। बहरहाल तस्वीर में दिख रहे मेरे बाबूजी बृजमोहन प्रसाद की दुनिया मेरे और मेरे बच्चो तक सीमित रही. .बाबूजी ने अपनी इकलौती संतान को अपार स्नेह-दान के साथ इतनी सुख-सुविधाएँ दी कि जिन्दगी मेरे लिए फूलों की सेज जैसी बनकर रह गयी. बाबूजी मेरी छोटी -बड़ी हर इच्छा पूरी करने के लिए इस…
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अगर ब्राह्मणवाद जैसे व्यर्थ के मुद्दों में ऊर्जा न गंवाकर बहुजन गत 18 साल से जारी डायवर्सिटी की वैचारिक लड़ाई के जी जान से जुटे होते तो इससे भी बड़ी- बड़ी सैकड़ों खबरें अबतक पढ़ने को मिली होती। वैसे बहुजन नेतृत्व और बुद्धिजीवियों ने डायवर्सिटी की अबतक अनदेखी कर ऐतिहासिक गलती की है, पर, अब से भी जुड़ जाएं तो न नौकरियों के अतिरिक्त अर्थोपार्जन की अन्यान्य गतिविधियों में हिस्सेदारी सुनिश्चित होने, बल्कि राजसत्ता पर कब्जा जमाने भी मार्ग प्रशस्त हो सकता है। जहाँ तक बहुजनों के राजसत्ता का सवाल है, यह सिर्फ बहुजनों में डायवर्सिटी का aspiration पैदा करके ही हासिल हो सकती है, इसलिए बहुजन नेताओं और बुद्धिजीवियों…
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कार्ल हेंज: मेरा फेवरिट जर्मन !
मित्रों, ७० के दशक में कोलकाता में रहने के दौरान हम जिस टीम को सबसे खतरनाक मानते थे, वह जर्मनी थी. हमलोग उन दिनों किसी बेहद खतरनाक आदमी की तुलना किसी से करते थे: वह जर्मनी होती थी. हमलोग की नजरो में खतरनाक का पर्याय जर्मन ही होता था. आज दुनिया की सबसे खतरनाक टीम के चरित्र कि पहचान रखने वाली वही जर्मनी की टीम आज मेक्सिको से हार गयी है. उसकी हार से प्रकृत फुटबाल प्रेमियों को जरुर आघात लगा होगा, किन्तु जर्मनी की सुपरमेसी से बोर लोग जरुर रहत की सांस लिए होंगे: मैंने भी लिया. लेकिन ग्रेट जर्मनी की हार के बाद जिसकी छवि मेरे जेहन में…
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जरूरी है कि हम टेक्नोलोजी और वित्त के मोर्चे पर चीन का मुक़ाबला करने की बेहतर तैयारी करें !
मित्रों, इस बुनियादी बात को अगर ध्यान में रखें तो बहुत सी परेशानियों से निजात पा जायेंगे! जिस बुनियादी बात से आपको अवगत कराना चाहता हूँ, वह यह है-: जिस दिन यू एन ओ वजूद में आया, उसी दिन तय हो गया कि अब आगे से कोई देश किसी को गुलाम नहीं बना सकता . अगर ऐसा नहीं होता तो दुनिया के किसी न किसी कोने में इलाका दखल की लड़ाई चलते रह। लेकिन ऐसा नहीं कि गुलामी पूरी तरह अतीत का विषय बनी. नहीं बानी, इसलिए कि उपभोग के आधिकाधिक साधनों पर कब्जा करने की मानव जाति की प्रवृत्ति न तो खत्म हुई है, न आगे होगी. उपभोग के…
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शांति स्वरूप बौद्ध जी को शत् शत् नमन
शांति स्वरूप बौद्ध सर द्वारा प्रकाशित ‘एक जिंदा देवी ; मायावती’ किताब मुझे पाठकों के एक विशाल वर्ग के निकट ले गयी । इस किताब ने जिन ढेरों लोगों की निकटता प्रदान की, उन्हीं में से एक हैं इंजीनियर jaypal b kamble। उन्होंने एक अलग तरह से बौद्ध जी के प्रति आदरांजलि देते हुए लिखा है- ‘2006 में एक सामाजिक कार्यक्रम में शिवाजी पार्क पर मैं मेरी पत्नी और बेटी शामिल हो गए थे. मेरे बेटी ने एक पुस्तक देखा . तब वह तीसरी में पढ़ती थी .पुस्तक का मुखपृष्ठ इतना आकर्षक था कि उसने वह पुस्तक ख़रीदा. पुस्तक का नाम था ‘मायावती- एक जिंदा देवी’ पुस्तक पढ़ने के बाद…
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इतिहास पुरुष शांति स्वरूप बौद्ध का आकस्मिक निधन – ढह गया आंबेडकरी आंदोलन का एक और स्तम्भ !
विगत ढाई महीनों से कोरोना के दहशत भरे माहौल में लिखते-पढ़ते भारी राहत के साथ दिन इसलिए कट रहे थे क्योंकि अपना कोई आत्मीय – स्वजन, इसकी चपेट में नहीं आया था। किन्तु 6 जून की शाम 4 बजे जिस खबर से रूबरू हुआ, वह हमारे लिए कोरोना काल की सबसे बुरी खबर साबित हुई । शाम 4 बजे फेसबुक खोलते ही मेरी नजर डॉ कबीर कात्यायन के छोटे से पोस्ट पर पड़ी,जिसके साथ शांति स्वरूप बौद्ध व एक अन्य व्यक्ति की तस्वीर लगी थी। तस्वीरें देखकर बुरी आशंका से घिर गया। जल्दी से पोस्ट पर नजर दौड़ाया तो लिखा मिला ,’ बेहद ही दुखद! आज क्या हो रहा है…
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कोरोना काल में साहित्य चर्चा- 14
करोड़ों में क्यों खेलते हैं वेस्टर्न साहित्यकार ! लॉकडाउन से उपजे हालात में सृष्ट हो सकता है : 21वीं सदी का एक्सोडस ! आज 5 जून को मेरे अभिन्न मित्र ग्रेट Frank huzoor ने फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर लॉक डाउन पर एक नॉवेल लिखने की इच्छा जाहिर किया, जिस पर मैंने निम्न कमेंट किया – ‘‘यह सही है लॉक डाउन ने भारत के शासक और शोषित वर्ग को समझने की नई दृष्टि दी है। खासकर हिंदुत्ववादी सत्ता नें हिन्दू उर्फ सवर्ण राष्ट्र निर्माण को दृष्टिगत रखते हुये लॉक डाउन को अवसरों में तब्दील करने का मन बनाते हुये, देश के जन्मजात श्रमिक वर्ग के साथ जिस निर्ममता का परिचय…
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थैंक्स गॉड! अमेरिकी प्रभुवर्ग ने अपना विवेक बचाए रखा है.
एक बड़े अंतराल के बाद अमेरिका नस्लीय घटना से एक बार फिर उबल रहा है। वहां के मिनीपोलिस की एक पुलिस हिरासत में गत 25 मई को श्वेत पुलिसकर्मी डेरेक चाउविन द्वारा अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की घुटने से गर्दन दबाकर हत्या किए जाने का वीडियो सामने आने के बाद से धरना-प्रदर्शनों का जो उग्र सिलसिला शुरू हुआ, उसकी चपेट में अमेरिका के 50 में से 40 राज्य आ गए हैं। प्रदर्शंनकारी लूटपाट कर रहे हैं, गाड़ियों और भवनों को आग के हवाले कर रहे हैं। इसे पिछले 52 सालों का सबसे भीषण हिंसा और नस्लीय अशांति की घटना बताया जा रहा है। इससे पहले 1968 में मार्टिन लूथर किंग जू.…
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कोरोना काल में साहित्य चर्चा- 13
करोड़ों में क्यों खेलते हैं वेस्टर्न साहित्यकार! गॉन विद द विंड: अमेरिकी गृह-युद्ध पर रचित मारग्रेट मिचेल की बेमिसाल कृति ! 1936 मे प्रकाशित गॉन विद द विंड अमेरिका के गृह- युद्ध की पृषभूमि रचित मारग्रेट मिशेल का एक ऐसा उपन्यास है,जिसे दुनिया से महानतम उपन्यासों में बहुत ऊंचा मक़ाम हासिल है। यह उपन्यास अपने विशाल कैनवास , कथानक और चरित्र चित्रण के साथ अपनी अनूठी और असाधारण प्रेम कथा के कारण बेजोड़ माना जाता है। यह प्रेमकथा ऐसे युद्ध की पृष्ठभूमि में चलती जिसकी भयंकर ज्वाला ने न जाने कितने बसे-बसाये शहरों और फलते फूलते परिवारों को अपने चपेट में ले लिया। युद्ध के बाद लाखों परिवारों की दुनिया…